हैलो, मोदी अंकल। मेरा नाम शिखा है। उत्तर प्रदेश में ही मेरा घर है। अंकल, मुझे ब्लड कैंसर है। मेरी मां रात दिन रोती रहती है। जब जब डॉक्टर अंकल मुझे देखकर जाते हैं मेरी मां की आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं लेते। मेरे पापा के पास बहुत रुपये नहीं हैं। डॉक्टर अंकल कह रहे थे कि मेरे इलाज में खूब पैसा चाहिए। आपने पूरे देश को कोरोना का वैक्सीन दिया है। अंकल मुझे भी जिंदगी दे दो। मेरे जैसे बच्चों का इलाज करवा दो।

मैं आपको ये ग्रीटिंग कार्ड भेज रही हूं। आपने कोरोना के लिए जो किया है उसकी बधाई देने के लिए देखो मैंने कार्ड पर अपना चेहरा भी बनाया है। मैं जानती हूं आप मुझे मायूस नहीं करोगे। मेरी मां की आंखों में आंसू नहीं आने दोगे। मैं जब बड़ी हो जाऊंगी तो पढ़ लिखकर एक डॉक्टर बनूंगी और फिर आपका भी ध्यान रखूंगी। आपको कभी परेशान नहीं होने दूंगी।

यह शब्द उस मासूमियत के गवाह हैं जो इस वक्त जिंदगी के लिए मौत से लड़ रही है। विश्व कैंसर दिवस की पूर्व संध्या पर शिखा जैसे कई बच्चों ने अलग अलग राज्यों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ग्रीटिंग कार्ड भेजे हैं। जानलेवा कैंसर से पीड़ित होने के बाद भी इन बच्चों ने ग्रीटिंग कार्ड पर न सिर्फ अपना मुस्कराता चेहरा बनाया है बल्कि कोरोना टीका पर पीएम मोदी को बधाई भी दी है। 

देश में हर साल कैंसर से लाखों मासूम जिंदगियां मौत की शिकार हो रही हैं। आर्थिक रुप से कमजोर परिवारों के लिए कैंसर ग्रस्त अपने बच्चों का उपचार कराना किसी जंग से कम भी नहीं है। सरकारी अस्पतालों में उपचार का इंतजार और प्राइवेट में लाखों का खर्च ज्यादात्तर बच्चों को समय रहते बचाने में सफल नहीं हो पाते। इसीलिए कैंसर ग्रस्त बच्चों के लिए अलग एक योजना लागू करने की अपील को लेकर बच्चों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। 


बच्चों में कैंसर बीमारी को लेकर काम करने वाले संगठन कैनकिड्स की अध्यक्ष पूनम बगई का कहना है कि विश्व स्तर पर हर साल करीब तीन लाख बच्चे कैंसर ग्रस्त पाए जाते हैं जिनमें एक चौथाई भारतीय हैं। देश में करीब 250 अस्पतालों में कैंसर पीड़ित बच्चों का उपचार होता है लेकिन यहां 30 फीसदी बच्चे ही उपचार कराने पहुंचते हैं। इस वक्त कैंसर को राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना में शामिल किया जाना बेहद जरूरी है।